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तन्न॒ इन्द्रो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॒ग्निराप॒ ओष॑धीर्व॒निनो॑ जुषन्त। शर्म॑न्त्स्याम म॒रुता॑मु॒पस्थे॑ यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥२५॥

English Transliteration

tan na indro varuṇo mitro agnir āpa oṣadhīr vanino juṣanta | śarman syāma marutām upasthe yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

तत्। नः॒। इन्द्रः॑। वरु॑णः। मि॒त्रः। अ॒ग्निः। आपः॑। ओष॑धीः। व॒निनः॑। जु॒ष॒न्त॒। शर्म॑न्। स्या॒म॒। म॒रुता॑म्। उ॒पऽस्थे॑। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥२५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:56» Mantra:25 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:26» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:25


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य किसके सदृश क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! जैसे (इन्द्रः) बिजुली (वरुणः) जल =जलाधिपति (मित्रः) मित्र (अग्निः) अग्नि (आपः) जल (ओषधीः) सोमलता आदि ओषधियों को (वनिनः) बहुत किरणें जिनमें पड़तीं ऐसे वन में वर्त्तमान वृक्ष आदि (नः) हम लोगों के (तत्) पूर्वोक्त सम्पूर्ण कर्म वा वस्तु की (जुषन्त) सेवा करें और जिस (शर्मन्) सुखकारक गृह में (मरुताम्) पवनों वा विद्वानों के (उपस्थे) समीप में हम लोग सुखी (स्याम) होवें उसमें (यूयम्) आप लोग (स्वस्तिभिः) कल्याणों से (नः) हम लोगों की (सदा) सदा (पात) रक्षा कीजिये ॥२५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जैसे बिजुली आदि पदार्थ सब की उन्नति और नाश करते हैं, वैसे ही दोषों का नाश कर और गुणों की वृद्धि करके सब की रक्षा को सब सदा करें ॥२५॥ इस सूक्त में वायु, विद्वान्, राजा, शूरवीर, अध्यापक, उपदेशक और रक्षक के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह छप्पनवाँ सूक्त और छब्बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किंवत् किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यथेन्द्रो वरुणो मित्रोऽग्निराप ओषधीर्वनिनो नस्तज्जुषन्त यस्मिन् शर्मन् मरुतामुपस्थे वयं सुखिनः स्याम तत्र यूयं स्वस्तिभिर्नस्सदा पात ॥२५॥

Word-Meaning: - (तत्) पूर्वोक्तं सर्वं कर्म वस्तु वा (नः) अस्माकम् (इन्द्रः) विद्युत् (वरुणः) जलाधिपतिः (मित्रः) सखा (अग्निः) पावकः (आपः) जलानि (ओषधीः) सोमलताद्याः (वनिनः) बहुकिरणयुक्ता वनस्था वृक्षादयः (जुषन्त) सेवन्ताम् (शर्मन्) शर्मणि सुखकारके गृहे (स्याम) भवेम (मरुताम्) वायूनां विदुषां वा (उपस्थे) समीपे (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) (सदा) (नः) अस्मान् ॥२५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा विद्युदादयः पदार्थाः सर्वान्नुन्नयन्ति क्षयन्ति च तथैव दोषान्विनाश्य गुणानुन्नीय सर्वेषां रक्षणं सर्वे सदा कुर्वन्त्विति ॥२५॥ अत्र मरुद्विद्वद्राजशूरवीराध्यापकोपदेशकरक्षकगुणकृत्यवर्णनादेतर्थदस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षट्पञ्चाशत्तमं सूक्तं षड्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे विद्युत इत्यादी पदार्थ सर्वांची उन्नती व नाश करतात तसे गुणांची वृद्धी व दोषांचा नाश करून सदैव सर्वांचे रक्षण करावे. ॥ २५ ॥